प्‍लास्टिक के कचरे में तब्‍दील होती दुनिया


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हमारे जीवन में प्‍लास्टिक किस हद तक प्रवेश कर गया है इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है, यह ठीक है कि प्‍लास्टिक से कई चीजें आसान हुई हैं लेकिन अब यह जीवों, इंसानों और पर्यावरण के लिए जंजाल बन चुका है।
भारत में हर दिन 15,342 टन प्‍लास्टिक का कचरा पैदा होता है जिसमें से 6000 टन एकत्र नहीं किया जाता है मतलब यह ऐसे ही पड़ा रहता है और वातावरण को नुकसान पहुंचाता रहता है क्‍योंकि यह अनेकों सालों तक सड़ता नही है।
प्‍लास्टिक का जाल हर जगह फैल चुका है शहर हो या गांव या दूर-दराज के क्षेत्र, नदियां, समुंदर सभी इसके प्रभाव से बचे नहीं हैं। समुंदर में कचरा फेंकने के मामले में हम दुनिया के 20 मुख्‍य देशों में आते हैं जिसमें चीन सबसे ऊपर है। प्‍लास्टिक एक खतरनाक जहर है जो इंसानों को नहीं बल्कि बाकी प्रजातियों को भी खत्‍म कर रहा है।
आजकल लगभग सभी चीजें प्‍लास्टिक में पैक होती हैं फिर चाहें कैन्‍डी हो, पानी या दूध या अन्‍य खाने-पीने की वस्‍तुएं।  यहां मैं एक उदाहरण लेना चाहूंगा, सभी जानते हैं हमारे देश में लाखों लोग गुटखा, पान मसाला  या इस तरह की अन्‍य चीजों का सेवन करते हैं और ये सभी चीजें प्‍लास्टिक के पाउच या सैशे में पैक होती है, लोग इस्‍तेमाल के बाद पाउचों को सड़क पर बिना हिचकिचाए ऐसे ही फेंक देते हैं, सोचिए अगर इनका सेवन करने वाला एक व्‍यक्ति रोज ऐसे 10 पाउचेज फेंकता है तो वह एक महीने में 300 और साल में 3600 पाउचेज या सैशे फेंकेगा अब अगर हम उन अन्‍य लाखों लोगों की संख्‍या को इसमें शामिल कर लें जो इस तरह की चीजों का सेवन करते हैं तो यह आकड़ा बहुत विशाल हो जाता है।
हमारे देश में पोलीथीन पर प्रतिबंध है लेकिन ऐसा कहीं नजर नहीं आता है, दुकानदार धड़ल्‍ले से इसका इस्‍तेमाल करते हैं। अगर आप बाजार से सब्‍जी  लेकरआते हैं तो हर सब्‍जी के साथ हमें एक पोलीथीन का बैग चाहिए होता है क्‍योंकि यह मुफ्‍त मिलता है लेकिन घर आने के बाद हम इसे फेंक देते हैं उसके बाद यही प्‍लास्टिक नालियों, गलियों, सड़कों पर बिखरा पड़ा रहता है।
प्‍लास्टिक ग्रेड, रीसाइकिल प्‍लास्टिक, इसकी मोटाई कितनी होनी चाहिए आदि के बारे में भी कड़े नियम हैं लेकिन परवाह कौन करता है। प्‍लास्टिक को एकत्रित करने के बाद रीसाइक्लिंग प्‍लान्‍ट को भेज दिया जाता है जिससे कई तरह की चीजें बनती हैं जिसमें पोली बैग, खिलौने इत्‍यादि।

क्‍या आप जानते हैं कि मिनरल वॉटर की बोतल को दोबारा इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता है और रिसाइकल प्‍लास्टिक से बने पोली बैग को खाने-पीने की चीजों को रखने के लिए इस्‍तेमाल नहीं जा सकता है, शायद नहीं जानते होंगे, मैं बताता हूं ऐसा इसलिए है क्‍योंकि ये चीजें रीसाइकिल प्‍लास्टिक से बनती है और ज्‍यादा दिनों तक इस्‍तेमाल करने पर इनके हानिका‍रक कैमिकल उसमें रखी चीजों में घुल सकते हैं।
यहां-वहां बिखरा हुआ प्‍लास्टिक परेशानियां की वजह बनता है जैसे:
1. चारों तरफ बिखरा हुआ प्‍लास्टिक न केवल शहर की खूबसूरती पर दाग लगाता है बल्कि नालियों को जाम कर देता जिससे बरसात में भारी परेशानी होती है।
2. जिस कचरे में प्‍लास्टिक होता है उसे जलाने पर यह जहरीली गैसों को छोड़ते हुए पर्यावरण को नुकसान पहुंचा जा सकता है।
3. जानवरों के निगलने पर वे बीमार हो सकते हैं और उनकी जान भी जा सकती है।
4. खेतों में बिखरे रहने पर यह  मिट्टी की उर्वरक क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
5. नदियों और समुद्र में जाने पर इससे पानी में रहने वाले जीवों को नुकसान हो सकता है।

कौन सा कचरा कहां रखना चाहिए इस पर भी हमारे देश में नियम लागू हैं लेकिन अभी तक वे जागरुकता अभियानों तक ही सीमित हैं और इन अभियानों में जानी-मानी हस्तियों के शामिल होने के बावजूद शायद ही उन पर कोई ध्‍यान देता होगा।
एक और उदाहरण लेते हैं - जब हम यात्रा पर जाते हैं तो पानी की बोतल अवश्‍य खरीदते हैं और पानी पीने के बाद उसे इधर-उधर फेंक देते हैं कई लोग तो उसे कूड़ेदान में फेंकते हैं लेकिन ज्‍यादातर लोग खाली बोतलों या तो अपनी सीट पर ही छोड़ जाते हैं या खिड़की से बाहर फेंक देते हैं, इन बोतलों को सही तरीके से नहीं फेंकने पर ये यूं ही पड़ी रहती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है हम इन बोतलों का पानी मिनरल वॉटर समझकर पीते हैं लेकिन हम यह नही जानते हैं कि हम इन्‍हें इस्‍तेमाल हुए उन्‍ही मिनरल्‍स को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रिसर्च में पाया गया है कि इन पैकबंद बोतलों में मौजूद पानी में कोई विशेष गुण नहीं होते हैं और ताजा भी नहीं होता है इसलिए इससे हमें तो कोई फायदा नहीं मिलता मगर पर्यावरर्ण को नुकसान जरुर पहुंचता है।
गांवों में जहां शहर जैसी कूड़ा उठाने  की व्‍यवस्‍था नहीं होती है, लोग प्‍लास्टिक को जला देते हैं जिससे यह गांवों के स्‍वच्‍छ वातारण को दूषित करता है।
हमें प्‍लास्टिक के खतरों को समझना होगा जिससे हमारा भविष्‍य इसके बोझ तले दबने न पाये।
घरों का कूड़ा अलग-अलग करके फेंके, खाने-पीने की चीजें, फल-सब्जियों के छिलके, कागज आदि हरे कूड़ेदान में डाले और रासा‍यनिक चीजों जैसे प्‍लास्टिक, फोम आदि को नीले कूड़ेदान में डालें और भारत का भविष्‍य उज्‍जल बनायें।
धन्‍यवाद
नोट – यह लेख मेरे शोध और ऑब्‍जर्वेशन पर आधारित हैं

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