बच्‍चों का भविष्‍य

बाल दिवस - हमारा कल आज कितना सुरक्षित है



आज बाल दिवस है और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बच्‍चे हमारा कल हैं और उनका अच्‍छे से पालन-पोषण करना, उन्‍हें अच्‍छी शिक्षा, संस्‍कार देना हम सभी का कर्तव्‍य है लेकिन सैकड़ों एनजीओ के इस क्षेत्र में काम करने के बावजूद स्थिति बिल्‍कुल भी अच्‍छी नहीं कही जा सकती है, देश की राजधानी में ही बच्‍चों का भविष्‍य सुरक्षित नहीं है इसलिए अन्‍य राज्‍यों की स्थिति का अनुमान लगाना ही बेकार है। आज ही मैंने दो बच्‍चों से बात की जिनकी उम्र 10-12 साल रही होगी, वे दोनों ट्रैफिक सिग्‍नल पर सामान बेचकर अपना गुजारा करते हैं, एक के हाथ में बहुत सारे कैलेंडर और कुछ उपन्‍यास थे और दूसरे के पास एक प्‍लास्टिक के थैले में गाड़ी साफ करने में काम आने वाले गेरुवे रंग के कपड़े थे, आपको ऐसे ही कई बच्‍चे दिख जायेंगे जो खेलने-पढ़ने की उम्र में काम करते नजर आ जायेंगे लेकिन किसी भी एनजीओ की नजर इन पर नहीं पड़ती है
बच्‍चों की इस स्थिति का बड़ा कारण है गरीबी और इसके बाद शिक्षा का अभाव दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
http://www.friendsofsbt.org के अनुसार भारत में 440 मिलियन बच्‍चे हैं। जो नॉर्थ अमेरिका (यूएसए, मैक्सिको और कनाडा को मिलाकर) की पूरी जनसंख्‍या से ज्‍यादा है। दुनिया में हर पांचवा बच्‍चा भारतीय है।
यहां पर कुछ आंकड़ों का जिक्र करना जरुरीी है:
👉 5 साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत बच्‍चे कुपोषण के शिकार हैं
👉 40 प्रतिशत बच्‍चे नियमित रुप से स्‍कूल नहीं जाते हैं
👉 एक अनुमान के मुताबिक 60 मिलियन बाल मजदूरी करते हैं
👉 2 तिहाई बच्‍चे शारीरिक शोषण के शिकार हैं
अगर उनके स्‍वास्‍थ्‍य की बात करें तो भारत में हर साल लगभग 27 मिलियन बच्‍चे पैदा होते हैं लेकिन लगभग 2 मिलियन बच्‍चों 5 साल की उम्र तक पहुंचने से पहले ही मृत्‍यु हो जाती है। इनमें से सबसे ज्‍यादा कुपोषण की वजह से मरते हैं। 3 साल से कम उम्र के 79 प्रतिशत बच्‍चे अनीमिया यानि खून की कमी के शिकार हैं। आधे से ज्‍यादा बच्‍चों में आयोडीन की कमी है जिसके कारण उनकी सीखने की क्षमता प्रभावित होती है।
शिक्षा की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है – ज्‍यादातर बच्‍चे स्‍कूल में दाखिला तो लेते हैं लेकिन आधे बच्‍चे भी नियमित रुप से स्‍कूल नहीं जाते हैं। बहुतों को काम करने और पैसा कमाने के लिए मजबूर किया जाता है। कक्षा 5 तक पढ़ने के बाद 60 प्रतिशत से भी कम बच्‍चे एक छोटी सी कहानी को पढ़ पाते हैं या सरल जोड़-घटाना कर पाते हैं।
आधिकारिक आकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 12 मिलियन बाल मजदूर हैं, लेकिन कई एनजीओं के आकड़ों के अनुसार वास्‍तविक आकड़ा 60 मिलियन का है। इसमें शामिल लड़कियों कि संख्‍या लड़कों से बहुत ज्‍यादा कम नहीं है।
सबसे बड़ी संख्‍या में बच्‍चे कपड़े की फैक्ट्रियों, ढाबों और होटलों, या घरेलू सहायक के रुप में काम करते हैं। इनमें से कई बच्‍चे पटाखे या माचिस बनाने वाले कारखानों में काम करते हैं जो कि उनके जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है, बाल मजदूरी के कारण उनका बचपन उनसे छिन रहा है।
2007 में भारत सरकार ने बच्‍चों के शोषण पर दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे परिष्‍कृत स्‍टडीज में एक को प्रकाशित किया था, जिसे यूनिसेफ और सेव द चिल्‍ड्रन के सहयोग से किया गया था। इस विस्‍तृत रिसर्च में 12000 बच्‍चों को शामिल किया गया था जिससे कुछ दिल दहला देने वाले नतीजे सामने आये थे:
👉 दो तिहाई बच्‍चे शारीरिक शोषण के शिकार हैं। ज्‍यातर की स्‍कूल में पिटाई की जाती है और आधे से ज्‍यादा हफ्‍ते में सातों दिन काम करते हैं।
👉 50 प्रतिशत से ज्‍यादा किसी न किसी तरह के योन शोषण का सामना करते हैं, और उनमें से 20 प्रतिशत से ज्‍यादा का गंभीर शोषण किया जाता है।
👉 जबकि घर में मानसिक शोषण की वजह से कई बच्‍चे अपना घर या गांव छोड़कर दिल्‍ली जैसे शहरों में आने को मजबूर होते हैं। रेलवे स्‍टेशन, बस अड्डे पर पहुंचते ही वे दलालों के शिकार बन जाते हैं कुछ को बंधुवा मजदूर बना दिया जाता है, कुछ को प्‍लेसमेंट एजेन्‍सी को बेच दिया जाता है, कुछ की तस्‍करी की जाती है जबकि कुछ को भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है जो सौभाग्‍य से दलालों के चंगुल में आने से बच जाते हैं वे कूड़ा बीनकर अपनी जिंदगी बसर करते हैं, कई बच्‍चे नशे की चंगुल में फंंस जाते हैं और फिर इस जरुरत को पूरा करने केे लिए अपराध करने लगते हैं। 

आश्‍चर्य होता है कि सरकारों और सैकड़ों एनजीओ के इस क्षेत्र में काम करने के बावजूद स्थिति जस की तस है। अगर हमें अपना भविष्‍य सुरक्षित रखना है तो हमें ज्‍यादा ईमानदारी और कर्तव्‍यनिष्‍ठा से काम करना होगा।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ