दिल में एक अजीब सी कश-म-कश और घुटन सी रहती है
मन में भी अशांत समंदर सी लहरे उठती रहती हैं
दिन में सो नहीं सकता और रात को बेचैनी सोने न देती
आंखें बंद करता हूं तो एक अजीब सी उधेड़बुन शुरु होती है
दिल जोरों से धड़कता जाता है
और हथेलियों पर चुभन सी होती है
आंखें खोलता हूं तो खुद को पसीने से तर पाता हूं
आंखें खोलता हूं तो खुद को पसीने से तर पाता हूं
करवट बदलता हूं और खुद को समझाता-बुझाता हूं
मगर जैसे आंख लगती है तो एक और उलझन शुरु होती है
सपनों में भी हर तरफ जिंदगी बिखरी-बिखरी सी नजर आती है
असल जिंदगी का क्या कहूं मैं तो सपने में भी राह भटक जाता हूं
जब किसी तरह मंजिल पर पहुंचता हूं तो वहां न किसी को पाता हूं
सारा दिन खुद में कुढ़ता रहता हूं
मगर दिल की किसी को न कह पाता हूं
जरा सी बात से बेचैन होता हूं और खुद ही से रुठ जाता हूं
कभी-कभी तो गैरों से भी नाराज़ हो जाता हूं
रोने का मन करता है मगर रो नहीं पाता हूं
ये कोई मर्ज तो नहीं जो इसकी दवा-दारु करुं
डॉक्टर, नीम, हकीम से कहूं तो क्या कहूं
मगर जब अपने आस-पास हर किसी को इसी हाल में पाता हूं तो खुद को यही समझाता हूं,
मैं किसी से अलग तो नहीं हूं!
जरा सी बात से बेचैन होता हूं और खुद ही से रुठ जाता हूं
कभी-कभी तो गैरों से भी नाराज़ हो जाता हूं
रोने का मन करता है मगर रो नहीं पाता हूं
ये कोई मर्ज तो नहीं जो इसकी दवा-दारु करुं
डॉक्टर, नीम, हकीम से कहूं तो क्या कहूं
मगर जब अपने आस-पास हर किसी को इसी हाल में पाता हूं तो खुद को यही समझाता हूं,
मैं किसी से अलग तो नहीं हूं!
बस इसीलिए चुपचाप जिए चला जाता हूं……….

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