दिल्ली देश की या प्रदूषण की राजधानी
| हांफती दिल्ली |
वायु प्रदूषण
आपने गौर किया होगा
बरसात के मौसम को छोड़कर दिल्ली में जहां भी अाप जाते हैं हर समय वातावरण में धूल
उड़ती रहती है और धुंध सी छायी रहती है। उड़ती धूल सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में
प्रवेश करती है जिससे हमारे शरीर में सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है।
हम सभी को पता होना
चाहिए कि वायु प्रदूषण सबसे जानलेवा है, हजारों
लोग इससे हर साल बेमौत मर जाते हैं।
दिल्ली, दुनिया का छठा सबसे प्रदूषित महानगर है (इसमें
सारा एनसीआर भी शामिल कर लें तो यह दूसरा सबसे प्रदूषित महानगर क्षेत्र बन जाता
है)। मई 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नई दिल्ली को दुनिया की सबसे
प्रदूषित शहर घोषित किया है। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां रहना
कितना कठिन और जानलेवा है।
दिल्ली में
प्रदूषण के मुख्य कारण:
मेरे हिसाब से किसी
भी देश या शहर में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वहां की जनसंख्या होती है क्योंकि
जितने ज्यादा लोग होंगे उतने ज्यादा संसाधनों की जरुरत पड़ेगी और संसाधन पर्याप्त
न होने पर संतुलन बिगड़ेगा जिसके परिणाम हम देख ही रहे हैं।
किसी सीमित जगह पर
हद से बहुत ज्यादा लोगों का रहना और सीमित प्राकृतिक स्रोतों जैसे पानी का बहुत
ज्यादा इस्तेमाल पर्यावरण पर बहुत बुरा असर डालता है।
शहर में सबसे बड़ी
समस्या वायु प्रदूषण की हैं जिसके लिए सड़क की धूल और गाड़ियां जिम्मेदार है खासकर
डीजल से चलने वाली गाड़ियां दिल्ली का दम फुला रही हैं। इसके अलावा खेतों में फसल
के अवशेषों को जलाना भी प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है।
दिल्ली की इस हालत
के लिए कुछ हद अनाधिकृत कालोनियां, लाल डोरा क्षेत्र
भी जिम्मेदार हैं क्योंकि यहां किसी भी नियम का पालन नहीं किया जाता है और
प्राकृतिक संसाधनों को जमकर दोहन किया जाता है, जैसे जमीन के नीचे से पानी निकालना, फैक्ट्रियां, प्रिंटिंग प्रेस,
ड्राइ-क्लीनिंग, आरओ यूनिटें चलती हैं और बदले में ये लोग प्रकृति को कुछ भी लौटाते नहीं
है जैसे कि रेन हार्वेस्टिंग और पेड़ लगाना, पार्क बनाना आदि। बीमारियां भी ज्यादातर इन्हीं इलाकों में फैलती है
यानि ये सभी तरह के प्रदूषण में खुलकर भागीदारी निभाते हैं।
मशरुम की तरह उभरती
झुग्गी-झोपड़ियां न केवल शहर की खूबसूरती पर दाग हैं बल्कि ये प्रदूषण को बढ़ाने
में भी आगे हैं, खुले में शौच करना,
गंदगी फैलाना, खाना पकाने के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल करना इनका मौलिक अधिकार होता है,
मतलब ये पानी, हवा दोनों को प्रदूषित करते हैं।
दिल्ली में
प्रदूषण की शुरुआत सुबह लगने वाले झाड़ू होती है, झाड़ू से कूड़ा-करकट तो साफ हो जाता है लेकिन सड़क पर पड़ी धूल-मिट्टी
वातावरण में फैलने लगती है, झाड़ू लगाने के बाद
कूड़ा-कचरा ही उठाया जाता है जबकि धूल और रेत वहीं पड़ी रहती है जो वातावरण में
फैलती रहती है, कई जगहों पर झाड़ू
लगाने के बाद कूड़ा उठाने के बजाय इसे जला दिया जाता है जिससे वातावरण को दोहरा नुकसान पहुंचता है, कम से कम एमसीडी एरिया का तो यही हाल है, एनडीएमसी एरिया में स्थिति थोड़ी बेहतर है।
सरकार को इस बारे
में गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है, सफाई
का सबसेअच्छा तरीका है वैक्युम तकनीक का इस्तेमाल करना इससे सफाई भी होगी और
धूल वातावरण में नहीं उड़ेगी।
दिल्ली में इस
दीपावली के दौरान प्रदूषण का स्तर पिछली 2 दीवालियों से ज्यादा था, वो तब जब चीनी पटाखों पर रोक थी, और पटाखे 40 प्रतिशत कम बिके थे, पीएम (पार्टिकुलेट मैटर - ये बहुत सूक्ष्म कण होते हैं जो दिखायी नहीं देते हैं) का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था। केन्द्रीय
प्रदूषण निगरानी एजेन्सी के आकड़ों के अनुसार पार्टिकुलेट मैटर या पीएम 10 (मोटे
कणों) का घनत्व दिल्ली के आनंद विहार इलाके में देर रात 2 बजे सुरक्षित स्तर
100 की तुलना में 1600 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। पीएम 2.5 जो हवा की गुुणवत्ता
को स्टैंडर्ड स्तर है वह सुरक्षित सीमा से 14 गुना ज्यादा था। बाहर इतना ज्यादा
स्मोग (धुंआं) था कि 100 मीटर तक भी नहीं दिखायी दे रहा था।
यदि कोई व्यक्ति
लगातार असुरक्षित स्तर के संपर्क में रहता है तो उसे सांंस संबंधित बीमारियां हो
सकती हैं। इसी वजह से पिछले साल दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी को "गैस
चैंबर" कहा था लेकिन इतना सब होने के बावजूद हम लोग नहीं जागते हैं।
पटाखे जलाने से
वातावरण में खतरनाक गैस तो फैलती है लेकिन इसके साथ-साथ कचरा भी फैलता है जिसको
हटाने में भी काफी समय लगता है, लोग पटाखे जलाने के
खाली डिब्बे वहीं फेंक देते हैं या उनमें आग लगा देते हैं जो बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना
हरकत है।
आपने शायद महसूस किया होगा दिल्ली में हर समय
हवा में एक अजीब सी गंध रहती है - सड़क पर बिखरे कूड़े की बदबू, उबलते हुए सीवर के गंदेे पानी की बदबू, बस, ट्रेन
और मेट्रों में लोगों के शरीर और परफ्यूम की गंध आदि, अगर आप किसी हिल स्टेशन में जायें तो आपको अंतर समझ आ जायेगा।
हम सभी को सिर्फ
अपने बजाय अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में भी सोचना चाहिए। याद रखेंें हमारे पास प्राकृतिक
संसाधन बहुत सीमित हैं इसलिए इनका उपयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए नहीं तो आने वाली पीढ़ियों के कुछ भी नहीं
बचेगा। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण यमुना नदी है जो इस कदर गंदी हो चुकी है कि उसमें से
सड़न आती है लेकिन आज से 40-50 साल पहले यह ऐसी नहीं थी।
जारी है...............जल प्रदूषण
यह लेख मेरे व्यक्ति
अनुभवों और विचारों के आधार पर है
आपकी टिप्पणियों
का स्वागत है।
यश रावत
1 टिप्पणियाँ
अत्यंत सटीक आंंकलन
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