क्‍यों न टेलीविजन पर बच्‍चों के संबंधित रियलिटी कार्यक्रम प्रतिबंधित कर दिए जायें

यह फोटो यूट्यूब से ली गयी है
भारतीय टीवी क्षेत्र में रियलिटी के नाम जो फूहड़ता परोसी जा रही है उससे आप भली भांति परिचित होंगे खासकर बच्‍चों के रियलिटी शोज में जो कुछ दिखाया जा रहा है वह बेहद शर्मनाक है। पिछले दिनों मैं बच्‍चों से संबंधित रियलिटी शो "सबसे बड़ा कलाकर" देख रहा था उसमें बच्‍चों से जो कुछ करवाया गया है, उनसे जिस तरह के संवाद बुलवाये गये हैं और जिस तरह की एक्टिंग करायी गयी है उन्‍हें देखकर बड़ा दुख हुआ। इस तरह के अन्‍य कई कार्यक्रम है जैसे सा रे गा मा लिल चैंप, इंडियन आयडल जूनियर, सुपर डांसर, जूनियर मास्‍टर शेफ ये तो सिर्फ बानगी है ऐसे ही कई कार्यक्रम अन्‍य भाषाओं के चैनलों पर भी चलते रहते हैं।

ऐसे रियलिटी शो में बच्‍चे घंटों अपने एक्‍ट की रिहर्सल करते रहते हैं और ऐसे कार्यक्रमों की शूटिंग देर रात से लेकर सुबह तक चलती रहती है जिससे वे न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक तौर पर बहुत ज्‍यादा थक जाते हैं। मैं हैरान हूं कि किसी को बच्‍चों की मानसिक और शारीरिक थकान के बारे में कोई चिंता ही नहीं है खासकर मां-बाप तो अपने बच्‍चों को सुपर किड्स बनाने पर आमादा है वे अपनी महत्‍वकांक्षाओं को उनपर थोप रहे हैं और बेचारे बच्‍चे न चाहते हुए भी मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं केवल वे ही नहीं बल्कि ऐसे कार्यक्रमों को देखने वाले बच्‍चे भी मां-बाप का दबाव झेलते हैं क्‍योंकि अन्‍य मां-बाप भी अपने बच्‍चों की तुलना उनसे करते हैं।

चैनल टीआरपी की दौड़ में यह भूल जाते हैं क्‍या बच्‍चों के हित में क्‍या सही है और क्‍या गलत, बच्‍चे उनके लिए कठपुतिलियों की तरह होते हैं। बच्‍चों से जो एक्‍ट कराये जाते हैं उनके लिए बच्‍चों की उम्र बहुत छोटी है, 7-8 साल के बच्‍चे को क्‍या समझ होगी कि एक पुरुष और महिला के बीच के संबंध किस प्रकार के होते हैं, उनसे बड़ों की नकल और बुराई करायी जाती है, झूठ बुलवाया जाता है और जब बच्‍चे यह सब कर रहे होते हैं तो मां-बाप सामने बैठकर गर्व कर रहे होते हैं कि उनका बच्‍चा कितना होनहार है।

जब इतने भर से चैनल वालों का जी नहीं भरता तो वे सेलिब्रिटीज को बुलाते हैं जिससे बच्‍चे और भी नर्वस हो जाते हैं जो एक तरह का अत्‍याचार है। मां-बाप की अपने बच्‍चों को रातों-रात सुपरस्‍टार बना देने की कुंठित महत्‍वकांक्षा का ही नतीजा है कि बच्‍चे अपना बचपन खोते जा रहे हैं, वे क्‍या बनना चाहते हैं उस पर कोई ध्‍यान नहीं देता है। बच्‍चे सर्कस के पिंजरे में कैद उस शेर की तरह हैं जो अपने मास्‍टर के डर से वह सब कुछ करता है जो उसका स्‍वभाव नहीं है।

रियलिटी शो को देखने वाले अन्‍य करोड़ों बच्‍चों पर भी इसका घातक असर पड़ता है और वे भी इस तरह की चीजों के प्रति आकर्षित हो जाते हैं जिससे उनकी पढ़ाई और उनके सहज बुद्धि पर भी असर पड़ता है जबकि मध्‍यम और निम्‍न स्‍तर के परिवारों के बच्‍चों पर इसका ज्‍यादा प्रभाव पड़ता है क्‍योंकि उनके पास मनोरंजन का एकमात्र साधन टेलीविजन होता है, जैसे वे टीवी में देखते हैं वैसा ही बनने की कोशिश करते हैं।

बच्‍चों को जज करने से उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, खासकर जब वे हार जाते हैं और उन्‍हें शो से बाहर जाने के लिए कहा जाता है तो वे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं और उन्‍हें तनाव और डिप्रेशन हो जाता है।

मैं देख रहा था एक दृश्‍य में एक 6 साल का बच्‍चा नवजोत सिंह सिदधू बना हुआ है और उसी उम्र की एक बच्‍ची को उसकी गलफ्रेंड के रुप में दिखाया गया है और लड़का उसे प्रपोज कर रहा है लव लेटर दे रहा है जिसमें लिखी गयी बातें बच्‍चों के लिए उपयुक्‍त नहीं लगती हैं।

चैनल को तथ्‍यों का ध्‍यान रखना चाहिए, वैधानिक सूचना लिख देने से वे अपनी जिम्‍मेदारी से पल्‍ला नहीं झाड़ सकते हैं।

नेता, मीडिया और बुद्धिजीवी केवल उन मुद्दों को उछालते हैं जिनमें उनहें टीआरपी की बू आती है अन्‍यथा जनता मरती रहे।

इस तरह के सभी कार्यक्रमों को प्रति‍बंधित कर देना चाहिए ताकि देश का भविष्‍य सही ढंग से फल-फूल सकें।

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