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| स्वर्ण पदक गृहण करती तोशिको इदाका |
जापान के ओसाका की रहने वाली तोशिको ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के 34 वें दीक्षांत समारोह में रामानुजवेदांताचार्य की परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर पांच स्वर्ण पदक हासिल किए।
तोशिको ने बताया कि वह 8 साल पहले काशी आयी थी लेकिन यहां आने से पहले वह काठमांडू, नेपाल घूमने आयी थी और नेपाली भाषा सीखने लगी, लेकिन जब उसे पता चला कि नेपाली भाषा का मूल संस्कृत है, तब उन्होंने संस्कृत सीखने का फैसला किया। उन्हें बताया गया कि अगर संस्कृत सीखना है तो भारत में काशी से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है। तोशिको 2008 में काशी आयी और संस्कृत महाविद्यालय में प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम में दाखिला लिया।
तोशिको ने बताया कि उन्हें संस्कृत सीखते वक्त उच्चारण में परेशानी हुई मगर उन्होंने हार नही मानी, खूब लगन से पढ़ाई की और परीक्षा में सर्वोच्च अंक हासिल किए। इसके बाद शास्त्री में दाखिला लिया और प्रथम श्रेणी से उर्त्तीण हुई इसके बाद रानुजवेदांताचार्य में दाखिला लिया। आचार्य की परीक्षा में सर्वोच्च अंक आसिल कर 5 स्वर्ण पदक हासिल किए।
इसके बाद वह जापान में संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना चाहती है। तोशिको ने कहा कि जापान में कोई संस्कृत के बारे में नहीं जानता है। वह जापान में भारतीय संस्कृत का प्रसार करना चाहती है और संस्कृत में अध्ययन करना चाहती है।
हमारे देश में संस्कृत भाषा पांच हजार वर्षों से भी अधिक समय से मौजूद है, इसके बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार देवता अमर हैं उसी प्रकार सँस्कृत भाषा भी अपने विशाल-साहित्य, लोक हित की भावना, विभिन्न प्रयासों तथा उपसर्गो के द्वारा नये-नये शब्दों के निर्माण की क्षमता आदि के द्वारा अमर है।
विश्वभर की समस्त प्राचीन भाषाओं में संस्कृत का सर्वप्रथम और उच्च स्थान है। विश्व-साहित्य की पहली पुस्तक ऋग्वेद इसी भाषा का देदीप्यमान रत्न है। भारतीय संस्कृति का रहस्य इसी भाषा में निहित है। संस्कृत का अध्ययन किये बिना भारतीय संस्कृति का पूर्ण ज्ञान कभी सम्भव नहीं है।
लेकिन भारत में यह हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में इस्तेमाल होने वाली भाषा बनकर रह गयी है। स्कूलों में संस्कृत तो पढ़ाई जाती है लेकिन खाना-पूर्ति के लिए, शिक्षक कहते हैं संस्कृत में बस रट्टा लगाओ। अगर शिक्षक ही ऐसा कहेंगे तो विद्यार्थी भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद शायद ही किसी को संस्कृत का नाम भी याद रहता होगा।
किसी विदेशी व्यक्ति का हमारी इस प्राचीन भाषा प्रति ऐसा जुनून आश्चर्य चकित करने वाला है साथ ही यह हमारे लिए गर्व की बात भी है।
साभार - दैनिक हिन्दुस्तान

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