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| Teelu Rauteli Smarak,Bironkhal, Uttarakhand (c) |
इतिहास गवाह है कि महिलाओं को जब भी अवसर मिला है उन्होंने अपनी क्षमता एवम जौहर का प्रदर्शन किया है और साबित किया है कि वे पुरुषों से लेशमात्र भी कम नहीं हैं, ऐसा ही एक नाम है ‘‘तीलू रौतेली’’ गुराड़ गॉंव के थोकदार भूप सिंह गोर्ला और मैणा देवी की बेटी तीलू रौतेली का जन्म आज से लगभग 700 वर्ष पूर्व 8 अगस्त 1661 को हुआ था। तीलू को बचपन से ही तलवार बाजी और घुड़सवारी का शौक था, तीलू के पास एक काले रंग की घोड़ी भी थी जिसका नाम ‘बिन्दुली’ था।
कौथीग जाने का हठ
कुछ महीनों बाद कांडा गांव में कौथीग लगने वाला था, इससे पहले तीलू का परिवार हर साल इस कौथीग में हिस्सा लेता था और तीलू को मेले में जाना बहुत अच्छा लगता था, वह पूरे वर्ष इस कौथीग की प्रतीक्षा करती थी, हो भी क्यों नहीं, वहां इतनी सारी वस्तुएं जो मिलती थी जैसे जलेबी, चूड़िया, चुनरियां, खिलौने, मिठाईयां इत्यादि। उसका किशोर मन सब घटनाओं को भुलाकर कौथीग में जाने के लिए व्याकुल होने लगा।
तीलू जब 15 साल की हुई तो पिता भुप्पु गोर्ला ने उसकी मंगनी मंगनी इडा गांव के थोकदार भूम्या सिंह के बेटे भवानी सिंह से कर दी, किन्तु कुछ ही दिन बीते होंगे कि तीलू रौतेले के पिता, भवानी सिंह, ससुर भुम्या सिंह सराईं खेत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए और कुछ दिनों के बाद तीलू के दोनों भाईयों पतवा और भगतू भी कांडा के भीषण युद्ध में मारे गये। इस खबर पूरे चौंदकोट में सन्नाटा पसर गया क्योंकि कंत्यूरों के साथ युद्ध में पूरे क्षेत्र के अनगिनत योद्दा मारे गये।
तीलू – मॉं! मेरी प्यारी मॉं देख तो सारे गांव के बच्चे, जवान, बूढ़े नये-नये कपड़े पहनकर कांडा के कौथीग में जा रहे हैं, मुझे भी जाना है।
मॉं ने समझाया- बेटी! अभी तो तेरे पिताजी, भाईयों, ससुर, पति को गए 6 महीने भी नहीं हुए, हम अभी कोई भी त्योहार नहीं मना सकते हैं, जिद नहीं करते लाटी... किन्तु तीलू बच्ची जो ठहरी, वह लगातार जिद करती रही, मैणा देवी उसे मनाती रही, थोड़ी देर तो वह चुप रहती लेकिन जैसी रंग-बिरंगे पोशाके पहने लोगों को जाते हुए देखती हठ करने लगती, इससे तंग आकर मैणा देवी ने कुछ ऐसे वचन कहे जिससे तीलू का जीवन पूरी तरह से बदल गया।
‘तीलू तू कैसी है, रे! इतनी जल्दी तू अपने पिता और भाइयों का बलिदान भूल गयी। यदि आज मेरे पुत्र जीवित होते तो वे इन कैंतुरों से अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने की योजना बनाते और एक तू है जो कौथीग जाने का हठ कर रही है, यदि तेरी शिराओं में थोकदारों का रक्त दौड़ रहा है और तूने मेरी छाती का दूध पिया है तो पहले रणभूमि में जाकर अपने पिता, भाइयों और समस्त राज्य के मारे गये वीरों की मौत का प्रतिशोध ले! फिर खेलना कौथीग! इतना कह कर मैणा देवी फूट-फूटकर रोने लगी।
तीलू अपनी माता के इन कटु वचनों को सुनकर सन्न रह गयी, मैणा देवी की बातें उसके मन इतनी आहत कर गयी कि कौथीग जाने की धुन उसके दिमाग से जाती रही, वह व्याकुल हो उठी।
मां का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ तो बोली – याद रख, यदि तू धामशाही से प्रतिशोध लेने में सफल रही तो जग में तेरा नाम सदा के लिए अमर हो जाएगा इसलिए कौथीग का विचार छोड़ और युद्ध की तैयारी कर।
माता के उलाहने सुनकर तीलू का रक्त खौलने लगा, क्रोध के मारे वह बुरी तरह कांप रही थी, कांपते हुए स्वर में बोली – हे माता! मैं अपने वीर पिता एवं भाईयों की सौगंध खाकर कहती हूं कि मैं कत्यूरी वंश का समूल नाश करने के बाद ही आपको अपना चेहरा दिखाऊंगी’
ऊपर का अंश ‘तीलू रौतेली का प्रतिशोध’ पुस्तक से लिया गया है। पूरी कहानी पढ़ने के लिए इस पुस्तक को जरुर पढ़ें।
अपने पिता और भाईयों की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए तीलू को 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में उतरना पड़ा। 7 वर्षों तक लगातार युद्ध लड़ते हुए मात्र 22 वर्ष की उम्र में वीरगति को प्राप्त होने वाली तीलू रौतेली का शौर्यपूर्ण इतिहास आज गढ़वाली लोक साहित्य की गौरवशाली वीरगाथा का रूप धारण कर चुका है।
बीरोंखाल में वीरबाला तीलू रौतेली जन्मोत्सव 2023 का भव्य आयोजन
तीलू रौतेली की कर्मभूमि कहे जाने वाले बीरोंखाल को पहली बार उसका उचित सम्मान प्राप्त हुआ। 8 अगस्त 2023 को “वीरबाला तीलू रौतेली जन्मोत्सव” को भव्य तरीके से मनाया गया जिसमें अनेक महिला स्वयं सहायता समूह, आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और स्कूली बच्चों ने अपने कार्यक्रम पेश करते हुए इसे यादगार बना दिया इसके साथ ही बीरोंखाल के ब्लॉक मुख्यालय स्थित सभागार का नाम “वीरबाला तीलू रौतेली सभागार” कर अलंकरण समारोह किया गया।
बीरोंखाल – तीलू की कर्मभूमि
डुमैला डांडा में भीषण युद्ध हुआ जिसमें तीलू रौतेली के गुरु शिब्बू पोखरियाल बीरगति को प्राप्त हुए उनके साहस और वीरता को श्रद्धांजलि देने के लिए तीलू रौतेली ने कहा आज से इस स्थान को बीरोंखाल के नाम से जाना जायेगा।
बीरोंखाल क्षेत्र का तीलू के जीवन में विशेष महत्व है क्योंकि तीलू के दोनों भाई कंत्यूरों से लड़ते हुए कांडा में वीरगति को प्राप्त हुई और स्वयं तीलू की मृत्यु भी कांडा से होकर बहने वाली नयार नदी में ही हुई थी जो बीरोंखाल ब्लॉक के अंतर्गत आता है।
इतना महत्वपूर्ण स्थान होने के बावजूद यहां पर तीलू रौतेली की मूर्ति लगी हुई लेकिन तीलू रौतेली की शौर्यगाथा के बारे में एक शब्द भी नहीं लिखा गया है जिससे कई लोगों को पता ही नही है कि मूर्ति किसकी है इसलिए लोग ध्यान दिये बगैर ही गुजर जाते हैं। बीरोंखाल आने वाले कई लोगों को पता ही नहीं होता है कि तीलू रौतेली कौन है वे मूर्ति के आगे ही गाड़ी खडी करके चले जाते हैं।
कार्यक्रम के अंत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका प्राथमिक के रूप में नीलम जोशी प्रधानाध्यापिका राजकीय आदर्श प्राइमरी स्कूल बैजरो,सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका माध्यमिक पारुल रावत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय देवीखाल कोठा, सर्वश्रेष्ठ भोजनमाता शान्ति देवी राजकीय इंटर कॉलेज फरसाड़ी सर्वश्रेष्ठ आंगनबाड़ी केन्द्र के रूप में आंगनबाड़ी केंद्र तैली पखोली सुधा ढौंडियाल, सर्वश्रेष्ठ आशा कार्यकर्त्री के रूप में कलावती देवी, कोलरी मल्ली, एवं सर्वश्रेष्ठ महिला स्वयं सहायता समूह के रूप में जय माता स्वयं सहायता समूह कंडूली बड़ी की रेखा देवी को शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
आशा है इस तरह के कार्यक्रम से लोगों में जागरुकता आयेगी और वे तीलू के बलिदान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करेंगे।
मैंने पूरे कार्यक्रम का एक वीडियो भी बनाया है जिसे आप नीचे दिये गये लिंक / फोटो पर क्लिक करते हुए मेरे यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं।
तीलू रौतेली की स्मृति में गढ़वाल मंडल के कई गाँव में थड्या गीत गाये जाते हैं इनमें से एक नीचे दिया गया है।
ओ कांडा का कौथिग उर्योओ तिलू कौथिग बोला
धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे
द्वी वीर मेरा रणशूर ह्वेन
भगतु पत्ता को बदला लेक कौथीग खेलला
धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे
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