ओशो (OSHO) - मेरी दृष्टि से

कौन थे ओशो?

इंटरनेट के सौजन्‍य से 

ओशो 20वीं सदी के आध्‍यात्मिक गुरु व दर्शनशास्‍त्र के अध्‍यापक थे, ओशो का जन्‍म मध्‍य प्रदेश के रायसेन में 11 दिसम्‍बर 1931 को हुआ था बचपन का नाम चन्‍द्र मोहन जैन था बाद में आचार्य रजनीश कहलाये किन्‍तु उनकी असली पहचान ओशो के रुप में है। अपनी मुखरता के कारण ओशो हमेशा विवादों में रहे जिसके चलते उन्‍हें अनेकों समस्‍याओं का सामना करना पड़ा, भारत की तत्‍कालीन सरकार से मतभेद के चलते ओशो को भारत छोड़ना पड़ा, वे अमरीका चले गये किन्‍तु वहां भी विवादों ने उनका दामन नहीं छोड़ा जिसके कारण उन्‍हें अमरीका से भी निर्वासित होना पड़ा, इसके बाद ओशो ने दुनिया के 21 देशों से शरण मांगी किन्‍तु सभी ने उन्‍हें इंकार कर दिया तो वे दोबारा भारत आ गये और पुणे में आश्रम स्‍थापित करते हुए वहीं से प्रवचन करने लगे। 19 जनवरी 1990 को पुणे में उन्‍होंने अपनी अंतिम सांस ली, उनकी मृत्‍यु अभी तक एक रहस्‍य बनी हुई है।

ओशो साहित्‍य

ओशो ने कृष्‍ण स्‍मृति और गीता दर्शन, महावीर वाणी, संभोग से समाधि की ओर, ध्‍यान योग, प्रथम और अंतिम मुक्ति, पतंजलि योग सूत्र, मैं मृत्‍यु सिखाता हूं आदि जैसे अनेकों व प्रत्‍येक विषय पर पुस्‍तक लिखी है। शायद ही कोई ऐसा विषय होगा जिस पर ओशो ने प्रवचन न दिया हो।

यदि आप सच में जीवन दर्शन को समझना चाहते हैं तो आपको ओशो के विचारों को सुनना चाहिए, उनका एक-एक विचार आपको झकझोर कर रख देता है। जहां हम सभी जीवन के बारे में बात करते हैं वहीं ओशो मृत्‍यु के रहस्‍य को समझाते हैं, वे कहते हैं:

मृत्यु जीवन की पराकाष्ठा है

"जीवन का महानतम रहस्य स्वयं जीवन नहीं है, परंतु मृत्यु है। मृत्यु जीवन की पराकाष्ठा है, जीवन की परम खिलावट। मृत्यु में पूरा जीवन समा जाता है, मृत्यु में तुम घर आ जाते हो। जीवन, मृत्यु की और जाने वाली तीर्थ यात्रा है। बिलकुल आरंभ से ही मृत्यु आ रही होती है। जन्म के क्षण से ही मृत्यु तुम्हारी और चलना शुरू हो गई, और तुमने मृत्यु की और चलना शुरू कर दिया।

"और मानसिक चित्त के साथ जो बड़ी से बड़ी दुर्घटना हुई है वह यह है कि वह मृत्यु के विरुद्ध है। मृत्यु के विरुद्ध होने का अर्थ यह है कि तुम एक महानतम रहस्य को खो दोगे। और मृत्यु के विरुद्ध होने का यह अर्थ भी है कि तुम स्वयं जीवन को खो दोगे- क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे के साथ गहरे मेल में हैं; वे दो नहीं हैं। जीवन है ऊपर बढ़ना, मृत्यु है उसकी खिलावट। यात्रा और लक्ष्य अलग नहीं है। यात्रा का अंत लक्ष्य में ही है"।

शब्‍दों के जादूगर हैं ओशो

ओशो को आप शब्‍दों के जादूगर भी कह सकते हैं, उनके बोलने की विलक्षण शैली ऐसी है कि व्‍यक्ति उनके प्रवचनों को सुनते हुए मंत्रमुग्‍ध हो जाता है। उनके तर्क-वितर्क आपको चकित कर देते हैं, कभी वे आपको हंसाते हैं तो कभी आपकी अंतरआत्‍मा को कटोचते हैं।

ओशो द्वारा कही गयी बातों का मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है

वे वर्तमान के आध्‍यात्मिक गुरुओं से एकदम भिन्‍न हैं क्‍योंकि जहां वर्तमान के आध्‍यात्मिक गुरु वही रटी-रटाई बातें कहे जाते हैं वहीं ओशो भागवत गीता को भी वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में व्‍याख्‍या करते हुए सुनाते हैं, उसमें वर्तमान समय के अनुभवों और घटनाओं को सम्‍मलित करते हैं जिससे स्रोता उसे बड़े चाव से सुनते हैं क्‍योंकि उन्‍हें ओशों द्वारा कही गयी बातें अपने से संबंधित लगती हैं।





ये लेखक के व्‍यक्तिगत विचार हैं।

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