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| उत्तराखंड का पारंपरिक पहनावा और आभूषण |
हमारा देश भारत विविधताओं का समागम हैं यहां के सभी राज्यों और प्रांतों के अलग-अलग सांस्कृतिक व धार्मिक रीति-रिवाज और बोली भाषाएं हैं यदि हम उत्तराखंड की बात करें तो यहां का पारंपरिक पहनावा, वाद्य यंत्र और आभूषण इसकी पहचान है। उत्तराखंड की लोक संस्कृति को मुख्यत: दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है − कुमाऊंनी और गढ़वाली।
कुमाऊँ और गढ़वाल की वेषभूषा,बोली-भाषा, लोक गीतों में बहुत अंतर है जिसका कारण है यहां राज करने वाले राजा जिन्होंने कई शताब्दियों तक यहां राज किया, गढ़वाल में परमार वंश तो कुमाऊं में कत्यूर व चंद वंश ने राज किया।
उत्तराखंड के प्रमुख पारंपरिक परिधान व पहनावा
गढ़वाली परिधान – पुरुष पारंपरिक रुप से धोती, कुर्ता, मोरी (बास्कट), चूड़ीदार पायजामा, मिरजई, सफेद टोपी, पगड़ी, गुलबंद आदि पहनते हैं जबकि स्त्रियां - धोती, आंगड़ी, पिछोड़ा, गाती, फत्वे (बास्केट) गतूड आदि पहनती हैं और बच्चे घाघरा, कोट, झगुली, चूड़ीदार पायजामा, संतराथ आदि पोशाके पहनते थे।
कुमाऊंनी परिधान – पुरुष पारंपरिक रुप से धोती, कुर्ता, भोटी (बास्कट), टोपी, पैजामा, सुराव, कोट, कमीज, मिरजै, टांक (साफा) आदि पहनते हैं जबकि स्त्रियां - घाघरा, लहंगा, पिछौड़, आंगड़ा या आंगड़ी, धोती, चोली, खानू आदि पहनती हैं और बच्चे झगुली (लंबी फ्राक), संतराथ (स्लैक्स), झगुल कोट आदि पहनते थे। कुमाऊं क्षेत्र में महिलाओं द्वारा विवाह व मांगलिक कार्यों में पिछौड़ प्रमुखत: पहना जाने वाला वस्त्र है यह सुनहरी या सुर्ख लाल बिंदियों वाला एक दुपट्टा होता है जिसे हर उम्र वर्ग की महिलाएं धारण करती हैं।
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| उत्तराखंड में पुरुषों के पारंपरिक वस्त्र - Pic: Internet |
अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: रंगवाली पिछोड़ा
वर्तमान में तो सभी पश्चिमी वस्त्रों को पहनना पसंद करते हैं लेकिन अभी भी मांगलिक एव शुभ-अवसरों पर पारंपरिक वस्त्रों को पहना जाता है।
उत्तराखंड के प्रमुख आभूषण (Ornament/jewellery)

मुर्खली (मुर्खी) (मुंदड़ा)

उत्तराखंड में स्त्रियों व पुरुषों द्वारा धारण किए जाने वाले प्रमुख पारम्परिक आभूषण भी यहां की विशेष पहचान है, बदलते समय के साथ कई तरह के गहने अब विलुप्त हो गये हैं लेकिन अभी भी कई ऐसे गहने हैं जो प्रमुखता से पहने जाते हैं जिनमें गुलोबंद, तुंग्यला, मांगटीका, नथुली आदि प्रमुख है जबकि मुंदड़े, बुलाक, चंद्रहार, हंसुला आदि अब प्रचलन में नहीं है या बहुत कम है।
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| बुलाक | https://ukacademe.com/ |
माथे पर – सीसफूल, बिंदी या बांदी, सुहाग बिंदी, माँगटीका – सौभाग्य का प्रतीक
कान पर – मुर्खली (मुर्खी) (मुंदड़ा), बुजनी, तुग्यंला, मुनाड, कुंडल, कर्णफूल, मुंदड़े, गोरख या बाली (पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला)
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| नाक की फुल्ली या फूली |
नाक पर – नथ, नथुली, फुल्ली, बुलाक, फूली (कुंवारी लड़कियों द्वारा पहना जाने वाला)। नथ का आकर्षण आज की महिलाओं में अधिक है खासकर टिहरी की नथ। इस नथ का इतिहास राजशाही के दौर से शुरू होता है तब राज परिवार की महिलाएं सोने की नथ पहना करती थीं। नथ उस जमाने में सम्पन्नता दिखाने का साधन होता था जिसकी नथ जितनी मोटी होती थी उसे उतना संंपन्न माना जाता था।
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| गुलोबंद | Pic: Internet |
गले में – तिलहरी, चंद्रहार या लॉकेट, सूत, हंसुला, ग्लोबंद, चरे या चरयों, झुपिया, पौंला, पचमनी, सुतुवा हमेल (सिक्कों की माला) जिसे कुमाऊं में अठन्नीमाला, चवन्नीमाला, रुपैमाला के नाम से जाना जाता है। कुछ वर्षों से गुलोबंद का चलन दोबारा बढ़ने लगा है, गढ़वाली महिलाए विवाह आदि शुभ अवसरों पर गुलोबंद पहने नजर आती है।
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| Hasuli /हंसुली (Pic: Internet) |
कंधो पर – स्यूंण-सांगल (चाँदी का आभूषण)।
कमर पर – तगड़ी या तिगड़ी, कमर ज्यौड़ि।
हाथ पर – धागुला, खंडवे, गुंठी, ठ्वाक, कड़ा आदि।
बाजू पर – गोंखले
कलाई पर – पौंछी
पैरों में – पौंटा, झांवर या झिंवरा, अमिर्तीतार, इमरती, पाजेब, पैजवी, जेवरी
पैरों की अंगुली में – प्वलया या बिछवा, कण्डवा या सुधमन
समय के साथ साथ अब इनमें से अनेक वस्त्रों व आभूषणों की पहचान गुम सी हो गयी है और उनकी जगह आधुनिक व पश्चिमी शैली के गहनों ने ली है।
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