10 जनवरी को उत्तराखंड लोक संगीत के भीष्म पितामह कहे जाने वाले चन्द्र सिंह राही जी की पुण्य तिथि है। 10 जनवरी 2016 को सर गंगाराम अस्पाल में उनका देहांत हुआ था। चंद्र सिंह राही जी ने गढ़वाली और कुमाऊँनी भाषाओं में 550 से अधिक गीत गाए। उनके गीतों के 140 से अधिक ऑडियो कैसेट रिलीज हुए थे। उन्होंने पूरे भारत में 1,500 से अधिक शो में लाइव प्रदर्शन किया। उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में फ्वा बाघा रे, "स्वर्ग तारा जुन्याली राता, को सुणलो", "फ्योलडिया", "हिल्मा चांदी को बटैना", "चैता की चैतवाली", "भाना हो रंगीला भाना", "सतपुली का सैणा मेरी बौउ सुरीला" शामिल हैं। उनका पहला रिकॉर्ड किया गया एल्बम, "सौली घुरा घुर" बहुत हिट हुआ था खासकर ‘सौली घुरा घुर’ गाना।
महान लोक गायक श्री चन्द्र सिंह राही
जीवन परिचय
चंद्र सिंह राही जी (चंदर सिंह नेगी) का जन्म उत्तराखंड के गढ़वाल में पौड़ी की नयार घाटी के गयाली गांव के घड़ियाल परिवार में 28 मार्च 1942 को हुआ था। राही और उनके भाई, देव राज रंगीला ने पहाड़ी संगीत की परंपरा अपने पिता श्री दिलबर सिंह नेगी जी से सीखी, जो उत्तराखंड के जागर संगीत के गायक (जागरी) थे।
चंद्र सिंह राही जी बचपन से ही अपने पिता के साथ, डौंर (डमरु) थाली और हुडुकु जैसे पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों को बजाते थे, बड़े होकर राही जी ने केशव अनुरागी और उनके गुरु बचन सिंह से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा।
संगीत का सफर
चंद्र सिंह राही जी ने अपने गायन करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो (AIR) दिल्ली स्टेशन पर 13 मार्च 1963 को सेना के जवानों के लिए एक कार्यक्रम में "पारा बीड़ा की बसंती छोरी" गीत के साथ की थी। उन्होंने 1972 में आकाशवाणी लखनऊ के लिए गाना शुरू किया। उन्होंने 1970 के दशक में उनके गीत आकाशवाणी नजीबाबाद स्टेशन से और 1980 के दशक के बाद उनके गाने दूरदर्शन पर प्रसारित किए गए जिससे उनकी लोकप्रियता बढती चली गयी। रेडियो पर सुनाई देने वाली वह पहली गढ़वाली आवाज थी।
1966 में, राही जी ने जब अपने गुरु, गढ़वाली कवि कन्हैयालाल डांडरियाल के लिए अपने प्रसिद्ध गीत "दिल की उमाल" की रचना की, जिसके बाद उन्होंने उन्हें "राही" की उपाधि प्रदान की थी।
राही एक गीतकार और कवि भी थे। उनके कविता संग्रहों में दिल कु उमाल (1966), ढाई (1980), रमछोल (1981) और गीत गंगा (2010) शामिल हैं। राही ने मोनोग्राफ भी लिखे और बैले के लिए संगीत तैयार किया।
राही को एकमात्र ऐसा व्यक्ति माना जाता था जो उत्तराखंड के सभी लोक वाद्ययंत्रों को बजा सकते थे, जिसमें ढोल दमौ, शहनाई, डौंरु थाली और हुडुकी शामिल थे। उन्हें पहाड़ी संगीत के लिए अद्वितीय ताल अनुक्रमों (बीट पैटर्न) का भी ज्ञान था और वे इन तत्वों को अपनी संगीत प्रस्तुतियों में शामिल करते थे।
राही ने "खुदेड़ गीत", "संस्कार गीत", "बरहाई", "पनवाड़ा", "मेला गीत", "झौड़ा, पांडवानी", "चौंफला" "थड़िया", और "जागर" सहित उत्तराखंड के विभिन्न लोक रूपों को शामिल करते हुए 2,500 से अधिक पुराने पारंपरिक गीतों को एकत्र और क्यूरेट किया। उनकी पुस्तक, ए कॉम्प्रिहेंसिव स्टडी ऑफ द सॉन्ग्स, म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स, एंड डांस ऑफ द सेंट्रल हिमालय, को उत्तरांचल साहित्य, संस्कृति और कला परिषद द्वारा प्रकाशित किया जाना था।
व्यक्तिगत जीवन
1957 में जब वे दिल्ली आये तो शुरुआत में जीवन यापन के लिए उन्होंने बांसुरी बेची। बाद में उन्हें दूरसंचार विभाग में नौकरी मिल गयी। वे दिल्ली के शकरपुर इलाके में 40 वर्षों तक किराये के घर में रहे क्योंकि उन्होंने घर खरीदने के बजाय उस पैसे को उत्तराखंडी लोक संगीत रिकॉर्ड करने में निवेश करने का निश्चय किया।
परिवार की बात की जाये तो उनके घर में उनकी पत्नी और चार बेटे (वीरेन्द्र सिंह नेगी, महेन्द्र नेगी, सतीश नेगी और राकेश भारद्वाज) और एक बेटी (निधि ठाकुर) है। उनका पूरा परिवार संगीत के क्षेत्र से जुडा हुआ है। राही जी ने कहा कि उन्होंने अपना संगीत का ज्ञान अपने बडे बेटे वीरेन्द्र नेगी को दिया, जो उन्हीं की भांति बचपन से ही गायक और संगीतकार हैं। राही जी के सबसे छोटे बेटे राकेश भारद्वाज इंडियन रॉक-पॉप बैंड यूफोरिया (Ephoria) रिद्मिस्ट हैं। राकेश ने अपनी प्यूजिक कंपनी ‘पहाडी सोल’ के माध्यम से अपने पिता के लोकप्रिय गीतों को अलग अंदाज में तैयार और रिलीज करते हुए अपने पिता की संगीत की विरासत को श्रृद्धान्जली प्रदान की है।
उत्तराखंड लोक संगीत में चन्द्र सिंह राही जी का योगदान
वह एक समग्र रूप से प्रतिभाशाली कलाकार थे, जो उत्तराखंड के कई दुर्लभ वाद्ययंत्र बजा सकते थे, गा सकते थे और लिख भी सकते थे। उन्हें अपनी कला की पेचीदगियों और महत्व की भी उत्कृष्ट समझ थी। अपनी रचनात्मक गतिविधियों के अलावा, राही को उत्तराखंड के संगीत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का गहरा शौक था। उन्हें उत्तराखंड की संगीत संस्कृति के ज्ञान का खजाना माना जाता था, जिस पर उन्होंने लगातार शोध किया, प्रतिनिधित्व किया और अपने श्रोताओं को समझाया। राही जौनसार से लेकर जौहर घाटी तक पूरे उत्तराखंड की लोककथाओं के ज्ञान के लिए जाने जाते थे।
2015 में, संगीत नाटक अकादमी (संगीत, नृत्य और नाटक के लिए राष्ट्रीय अकादमी) ने अकादमी की अभिलेखीय फिल्मों और वीडियो रिकॉर्डिंग की वार्षिक स्क्रीनिंग, अपनी संचार श्रृंखला में "चंद्र सिंह राही एंड पार्टी द्वारा गढ़वाल के लोक संगीत की स्क्रीनिंग" प्रस्तुत की।
उत्तराखंड लोक संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें अनेक अवार्ड भी प्रदान किए गये:
- मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला सम्मान
- डॉ. शिवानंद नौटियाल स्मृति पुरस्कार
- गढ़ भारती, गढ़वाल सभा सम्मान पत्र (1995)
- मोनाल संस्था, लखनऊ सम्मान पत्र
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