विश्‍व शौचालय दिवस (World Toilet Day 2016)


विश्‍व शौचालय दिवस की शुरुआत 19 नवंबर 2001 में विश्‍व शौचालय संस्‍था द्वारा की गयी थी इस अभियान का उद्देश्‍य था दुनिया भर के करोड़ो लोगों को सैनिटेशन यानि स्‍वच्‍छता के प्रति प्रोत्‍साहित करना है। 2013 में यूनाइटेड नेशन ने विश्‍व शौचालय दिवस को यूनाइटेड नेशन इंटरनेशनल डे के तौर पर पहचाने जाने के लिए प्रस्‍ताव पारित किया।
2015 में अनुमान लगाया गया था कि दुनिया भर में 2.4 बिलियन (यानि हर 3 लोगों में से 1) के पास बेहतर स्‍वच्‍छता सुविधाओं का अभाव है जिसके कारण 1 बिलियन लोग खुलेे में शौच करने जाते हैं और लगभग 800,000 बच्‍चे हर साल हाइजीन की कमी के कारण मारे जाते हैं।
ऐसा अनुमान है कि डायरिया के 54 प्रतिशत मामलों में इसका कारण असुुरक्षित पानी, खराब सैनिटेशन और हाइजीन होता है (जिसमें हाथ न धोने की खराब आदत भी शामिल है)। इसका नतीजा है कि 2013 में 5 साल से कम उम्र के 340,000 बच्‍चे पानी, सैनिटेशन, हाइ‍जीन (स्‍वच्‍छता) से संबंधित डायरिया की वजह से मारे गये यानि एक दिन में लगभग 1.000 बच्‍चों की मौत हुई।
खुले में शौच करने से इंसान की सुुरक्षा और निजिता भी भंग होती है। यह खासतौर पर विकासशील देशों में महिलाओं और लड़कियों के लिए एक हकीकत है, जिनकी निजिता भंग होती है और खुले में शौच करने से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है, या पूरे दिन सहन करना पड़ता है कि कब रात हो और वे शौच के लिए जा सकें।
विश्‍व शौचालय दिवस की शाम को, एक वैश्विक एनजीओ की रिर्पोट कहती है कि भारत में शहर या कस्‍बों में ऐसे लोगों की संख्‍या दुनिया में सबसे ज्‍यादा है जो खुले में शौच करने जाते हैं, सुरक्षित निजी शौचालय नहीं होने के बावजूद सरकार ने सैनिटेशन (स्‍वच्‍छता) को प्राथमिकता दी है।
वाटर ऐड रिर्पोट कहती है कि आज के भारत में 381 मिलियन लोग जो पश्चिमी यूरोप की जनसंख्‍या के बराबर है, तेजी से फैल रहे शहरी इलाकों में रहती है और इस आबादी में से 157 मिलियन लोगों के पास उचित शौचालय नहीं है।
समस्‍या यह भी है लोगों के घरों में शौचालय होने के बावजूद वे खुल में शौच के लिए जाते हैं और इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे -
1. पानी की कमी
2. शौचालय इस्‍तेमाल करने की आदत न डाल पाना
3. शौचालय की सफाई नहीं होने के कारण आने वाली दुर्गन्‍ध
4. सही ढंग से निर्माण न करना
5. नाली बंद हो जाना, निकास की सही व्‍यवस्‍था न होना
6. गलत जगह पर होना
खुले में शौच करना यानि बीमारियों को जन्‍म देना इसलिए लोगों को थोड़ा सब्र करना सीखना चाहिए, खासकर उन लोगों को जो कहीं पर पेशाब करने लगते हैं और उन्‍हें ऐसा करने में शर्मिदगी भी महसूस नहीं होती है।

सरकार जब अपनी तरफ से कोई पहल करती है तो जिम्‍मेदार नागरिक होने के नाते हमें भी इस पहल में अपना योगदान देना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है, सरकार ने गूगल के साथ करार किया है कि स्‍वच्‍छता अभियान के तहत देश के सभी शहरों में शौचालयों के निर्माण की गुणवत्‍ता परखने का काम गूगल मदद से होगा।

हमारे देश में स्‍वच्‍छ भारत मिशन ग्रामीण इस दिशा में काम कर रहा है उसका लक्ष्‍य 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्‍त बनाने का है। इस दिशा में कुछ उपलब्धियां हासिल की गयी हैं :
⇒ 2.7 करोड़ घरों में शौचालय बनाए गए हैं, 
⇒ 1.2 लाख गांव खुले में शोच मुक्‍त घोषित हो चुके हैं। 
⇒ 60 जिले खुले में शौच मुक्‍त घोषित हो चुके हैं और 
⇒ 3 राज्‍य खुले में शौच मुक्‍त घोषित हो चुके हैं।

इस मिशन का सफल बनाने के लिए अपना योगदान दें और देश को महान बनायें।
आपके विचार बहुमूल्‍य है इसलिए अपनी कीमती राय देंं।
पूरा लेख मेरे रिसर्च और अनुभव पर आधारित हैंं, यदि आप किसी बात से सहमत नहीं हैं तो कृपया मुझे बतायें।


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