बैंगलुरु में 31 दिसंबर की रात को 1500 पुलिस वालों के होते हुए जो कुछ घटा, वह हमारे देश के लिए बहुत शर्मनाक बात है। दक्षिण भारत में ऐसी घटनाएं होना चौंकाता है क्योंकि वहां लोग महिलाओं का सम्मान करते हैं और ऐसी घटनाएं बहुत ही कम देखने को मिलती हैं। इसके अलावा सीसीटीवी में कैद घटना का जिक्र करना भी जरुरी हैं जिसमें एक लड़की के साथ उसके घर के नजदीक ही छेड़छाड़ की गयी और उसे जबरन स्कूटर में बिठाने का प्रयास किया गया जबकि थोड़ी दूरी पर लोग आराम से इधर-उधर आ-जा रहे थे लेकिन किसी ने भी बीच-बचाव की कोशिश नहीं की, जो दिखाता है कि हमारे देश में लोगों में सामाजिक दायित्व की भावना ना के बराबर है, हम बस अपने काम से काम रखते हैं। यह एक खतरनाक सोच है इसे बदलने की तुरंत जरुरत है।
बैंगलुरु जैसी घटनाएं न केवल हमारे देश को छवि को धूमिल करती है बल्कि महिलाओं की सुरक्षा की बात करने वाले नेताओं की पोल भी खोलती है। इसका ताजा उदाहरण है कर्नाटक के गृह मंत्री का विवास्पद बयान जो उन्होंने बैंगलुरु की घटना के बाद दिया है कि “नये साल के जश्न में तो ऐसा होता रहता है” जो महिलाओं प्रति उनकी प्रतिबद्धता और सम्मान को दर्शाता है।
हर बार की तरह इस बार भी नेता विवादित बयान देने से बाज नहीं आ रहे हैं, समाजवादी पार्टी के बड़े नेता अबु आजमी साहब का कहना है कि महिलाओं को केवल अपने भाई, पति, या पिता के साथ ही बाहर जाना चाहिए, छोटे-छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए और ऐसी घटनाएं उनके छोटे-छोटे कपड़े पहनने के कारण होती है। पर वे पुरुषों के बारे में कुछ भी नहीं कहते हैं। महान नेताजी इसका ठीकरा पश्चमी सभ्यता पर फोड़ते हैं लेकिन आजमी को पता होना चाहिए कि पश्चिमी देशों में महिलाएं इससे भी छोटे कपड़े पहनती हैं। वहां का पुरुष समाज इतना संकुचित सोच नहीं रखता है। वहां महिलाओं के साथ ऐसा कुछ नहीं होता है वहां आप महिला की मर्जी के बगैर उन्हें छू भी नहीं सकते हैं।
नेताओं को महिलाओं को सलाह देने से पहले हमारे देश के पुरुषों के नैतिक विकास के लिए कदम उठाने चाहिए, शिक्षा के स्तर को ऊंचा करना चाहिए, बचपन से ही उन्हें उनके नैतिक दायित्वों का पाठ पढ़ाना चाहिए, तभी जाकर कुछ हो सकता है, वरना, सरकारें कितने भी पुख्ता नियत बना ले, कितना भी बड़ा जुर्माना लगा लें, ऐसी घटनाएं नहीं रुकेंगी। एयर कंडीशन्ड न्यूज रुमों में बहस करने या धरना-प्रदर्शन से भी इसका हल नहीं निकलेगा। इसका हल संसद में बहस से निकल सकता है मगर हमारे महान नेता संसद चलने नहीं देते हैं।
2012 में हुई दिल्ली की घटना के बाद से न जाने कौन-कौन से कानून बने लेकिन आज भी स्थिति ज्यों की त्यों है। निर्भया फंड बनाया गया था जिसमें जमा किए गए करोड़ों रुपयें बेकार पड़े हैं उनका बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया गया है। सभी जानते हैं कानून बनाने से समस्या हल नहीं होगी बल्कि इसे लागू करने से समस्या हल होती है।
ऐसी घटनाओं को सबसे बड़ा कारण मेरे विचार से उचित शिक्षा प्रणाली का अभाव है। हमें स्कूल में बस अगली कक्षा में जाने लायक ही शिक्षा मिलती है। पाठ्यक्रम के अलावा अन्य गतिविधियां ना के बराबर होती हैं, स्कूल छोटी-मोटी खेल प्रतियोगिताओं को कराते हुए हमना दायित्व पूरा कर लेते हैं। बच्चों के सामाजिक, मानसिक, नैतिक विकास पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है। उन्हें सेल्फ डिफेंस का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है उन्हें परिस्थितियों से निपटने के लिए मानसिक रुप से तैयार नहीं किया जाता है।
मां-बाप भी इस तरह की घटनाओं पर खेद जताने के बाद भूल जाते हैं। वे अपने बच्चों को ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं करते हैं।
आकड़ों के मुताबिक हमारे देश में युवाओं की तादाद सबसे ज्यादा हैं लेकिन ऐसे युवाओं का क्या लाभ जो देश के काम न आयें और देश का नाम रौशन करने की बजाय उस पर बट्टा लगायें।
महिलाओं को इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग लेनी चाहिए। उन्हें अपने पास पेप्पर स्प्रे रखना चाहिए और सबसे बड़ी बात उन्हें मानसिक तौर पर इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।
सिर्फ किताबी कीड़े न बनकर न रहें, खुद को सशक्त बनाने की दिशा में आज ही कदम उठायें।यह मेरी व्यक्तिगत राय है।
अपनी राय अवश्य दें
धन्यवाद

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