लाल बहादुर शास्त्री जी आज जिंदा होते तो उतने कितना दु:ख होता कि उन्होंने जिस उम्मीद से “जय जवान और जय किसान” का नारा दिया था आज उन दोनों की स्थिति कितनी दयनीय है किसान रोज आत्महत्या कर रहे हैं और जवानों को आतंकवादी मार रहे हैं मगर सरकारें सिर्फ अपने हित साधने में जुटे हुए हैं।
2 हफ्तों से जंतर-मंतर पर तमिलनाडू के किसान घरने पर बैठे हुए हैं वे अपने साथ अपने साथियों के नरमुंड लेकर आये
हैं, ये उन किसानों के नरमुंड है जो आत्म हत्या कर चुके हैं। इन लोगों की सुनने
वाला यहां पर कोई नहीं है क्योंकि उन्हें हिन्दी नहीं आती है।
इस आंदोलन को जारी रखने के लिए वे आत्महत्या करने वाले लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें दफना रहे हैं।
इस आंदोलन को जारी रखने के लिए वे आत्महत्या करने वाले लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें दफना रहे हैं।
आंकड़ों की बात करें तो 1995 के बाद से अब 4 लाख
किसान आत्म हत्या कर चुके हैं,
76 प्रतिशत किसान खेती छोड़कर कोई और काम करना चाहते हैं।
61 प्रतिशत किसान कोई नौकरी करना चाहते हैं। 1950 – 51 में 50 प्रतिशत लोग
खेती करते थे लेकिन वर्तमान की बात करें तो केवल 24 प्रतिशत लोग ही खेती करते हैं।
कर्ज़ ना चुका पाने की वजह से बैंक वाले उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं हमारे देश का कानून भी अजीब है माल्या 900 करोड़ रुपये लेकर भाग गया उसका कोई कुछ नहीं कर पाया लेकिन किसानों के मामूली से कर्ज के लिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। मगर वहां के नेता अपनी कुर्सियां बचाने की जुगत में लगे हुए हैं क्योंकि जयललिता की मौत के बाद उनकी पार्टी दो धड़ों में बंट गयी है और उनके आपसी घमासान की वजह से सभी का ध्यान अपनी राजनीति चमकाने पर हैं।
तमिलनाडू पिछले कई सालों से सूखे की चपेट है हर साल सैकड़ों किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन पता नहीं क्यों नेताओं और प्रशासन की नींद क्यों नहीं जागती है।
इन लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उम्मीदे हैं और प्रधानमंत्री ने इस दिशा में काम करना शुरु कर दिया है और केन्द्रीय सरकार ने रु.2014 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद को स्वीकृति दी है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय पर जमीन तो रहेंगी लेकिन खेती करने वाले किसान नहीं बचेंगे।
"जय जवान और जय किसान"
अपनी राय जरुर दें।
धन्यवाद
तमिलनाडू पिछले कई सालों से सूखे की चपेट है हर साल सैकड़ों किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन पता नहीं क्यों नेताओं और प्रशासन की नींद क्यों नहीं जागती है।
इन लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उम्मीदे हैं और प्रधानमंत्री ने इस दिशा में काम करना शुरु कर दिया है और केन्द्रीय सरकार ने रु.2014 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद को स्वीकृति दी है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय पर जमीन तो रहेंगी लेकिन खेती करने वाले किसान नहीं बचेंगे।
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