आज वर्ल्ड हेल्थ डे है, हम सभी जानते हैं कि जीवन में सफलता हासिल करने के लिए सेहत कितनी महत्वपूर्ण होती है मगर शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी हमारे जीवन में बहुत अहम भूमिका निभाता है। शारीरिक रुप से अस्वस्थ होने पर इंसान विभिन्न जांचों के जरिए इसका निदान कर सकता है लेकिन मानसिक बीमारी का पता लगाना जरा मुश्किल होता है।
आज मैं मानसिक स्वास्थ्य एवं विकारों की बात करुंगा क्योंकि मैं भी इससे प्रभावित रहा हूं और अच्छी तरह से जानता हूं कि जब मनुष्य मानसिक रुप से बीमार होता है तो वह किन परिस्थितियों से गुजरता है, अपनी इन परिस्थितियों के बारे में मैं अपने पिछले ब्लॉग “मैं, मेरी एंजायटी और तनाव” में बता चुका हूं।
आपको पता होना चाहिए आज भारत में 5 फीसदी लोग डिप्रेशन के शिकार हैं और उनमें से केवल 10 फीसदी को ही उपचार मिल पा रहा है। ज्यादातर लोगों को तो पता ही नहीं चल पाता कि वे मानसिक रुप से अस्वस्थ हैं। व्यस्क, बुजुर्ग ही नहीं बल्कि बच्चे भी इसकी गिरफ्त में है। आत्महत्या करने वाले लोगों का सबसे कारण डिप्रेशन ही है, NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के अनुसार भारत में हर रोज 371 लोग खुदखुशी करते हैं। शहरी इलाकों में रहने वाले हर 100 में 1 व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है।
आज मैं खासकर बच्चों में एंजायटी यानि तीव्र चिंता और डिप्रेशन यानि अवसाद के बारे में बात करना चाहूंगा, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार लगभग 2 फीसदी बच्चे डिप्रेशन के शिकार हैं। अगर उदासी गहरी नहीं है और लगातार एक वर्ष से चली आ रही है तो इसे डिस्थायमिया कहते हैं। इससे बच्चों का आत्मविश्वास कम हो जाता है, खाने और सोने में परेशानी होती है। डिस्थायमिया के शिकार 10 फीसदी बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। आजकल 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और किशोरों में तो यह मामले बहुत ज्यादा देखने में आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण डिप्रेशन है।
इसके मुख्य कारण हैं
- पढ़ाई को बढ़ता बोझ
- पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन न कर पाना
- दूसरे छात्रों द्वारा तंग किया जाना
- शारीरिक या लैंगिक हिंसा का शिकार होना
- पारिवारिक माहौल
- लैच-की सिंड्रोम (एकल परिवार और मां-बाप का कामकाजी होने से घर में सूनापन)
- बढ़ता कंपीटीशन
इससे कैसे निबटे
- बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का दबाव न डालें बल्कि उसकी रुचि के बारे में पता लगायें।
- बच्चों के साथ समय बितायें, उन्हें घुमाने ले जायें, कोई दिल-बहलाने वाली गतिविधि को करें।
- बच्चों को सामाजिक गतिविधियों में शामिल करें।
- उन्हें खुलकर अपनी बात कहने दें, उन्हें डांटें नहीं
- दूसरे बच्चों के साथ उनकी तुलना न करें
- उन्हें सेहतमंद और पौष्टिक खाना खिलायें
- उन्हें टीवी, मोबाइल फोन से दूर रहने और बाहर जाकर खेलने के लिए प्रेरित करें
- उन्हें पूरी नींद लेने दें
- बचपन से ही उनमें व्यायाम और योग की आदत डालें
- उनमें विटामिन डी की कमी न होने दें क्योंकि विटामिन डी की कमी वाले लोगों के डिप्रेशन का शिकार होने की अधिक संभावना रहती है।
अगर आपका बच्चा या आपके परिवार में कोई बच्चा गुमसुम, उदास और चिड़चिड़ा रहता है तो समझ जाइए कि यह खतरे की घंटी है। इस स्थिति में उसके साथ समय बितायें, उसके उसकी पसंदीदा गतिविधियों को करने दीजिए अगर फिर भी उसके व्यवहार में बदलाव नहीं आता है तो उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाये नाकि किसी ओझा या तांत्रिक के पास।
मुझे ऐसी कुछ परिस्थितियों का अनुभव है जब बच्चे को मानसिक समस्या होने पर और मेरे उनसे कहने के बावजूद मां-बाप ने मनोचिकित्सक के पास जाने की बजाय ओझा और तांत्रिक पर हजारों रुपयें बर्बाद करना उचित समझा क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी ने उनके बेटे पर जादू-टोना कर दिया है।
हमारे देश में आज भी मानसिक बीमारी को एक कलंक के तौर पर देखा जाता है या इसे देवी-देवताओं से जोड़कर देखा जाता है और लोग इन सब टोटकों में समय बर्बाद कर देते हैं और फिर समस्या इतनी भयावह हो जाती है कि बच्चे का पूरा जीवन ही बर्बाद हो जाता है।
याद रखिए माता-पिता होने के नाते बच्चों की अच्छी परवरिश हमारा परम कर्तव्य है इसलिए एक अच्छे और जागरुक माता-पिता बनें।
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