गढ़ रत्न श्री नरेन्‍द्र सिंह नेगी - उत्‍तराखंड की आवाज


यूं तो उत्‍तराखंड की शान बढ़ाने वाले कई नाम हैं जैसे रामी बौराणी, तीलू रौतेली, माधो सिंह भंडारी, गोबिन्‍द बल्‍लभपंत, हेमती नंदन बहुगुणा, स्‍वतंत्रता सेनानी गुणानंद पाठिक, श्रीदेव सुमन, विक्‍टोरिया क्रॉस गबर सिंह, माउन्‍ट एवरेस्‍ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बछेन्‍द्री पाल, पर्वतारोही चंद्रप्रभा एटवॉल और भी न जाने कितनी शख्सियतें हैं।
मगर जब हम कला एवं मनोरंजन क्षेत्र की बात करते हैं तो नरेन्‍द्र सिंह नेगी एक ऐसा नाम है जिसने उत्‍तराखंड के जनमानस को न केवल प्रभावित बल्कि प्रेरित भी किया है, उत्‍तराखंड में यह बात प्रचलित है कि अगर आप उत्‍तराखंड को करीब से महसूस करना चाहते हैं तो आपको गढ़रत्‍न नरेन्‍द्र सिंह नेगी जी के गीतों को सुनना चाहिए।
नेगी जी के गीतों में अपनी मात्रृ भूमि के लिए प्रेम साफ झलकता है इसीलिए वे हर समस्‍या पर गीतों के माध्‍यम से अपना विरोध जताते रहे हैं फिर चाहे टिहरी डैम हो, उत्‍तराखंड आंदोलन हो, चुनावों में शराब का प्रचलन हो, सरकार का भ्रष्‍टाचार हो, जंगलों का कटान हो या लोगों का पलायन का मुद्दा हो सभी पर उनके गीत गंभीर चोट करते हैं। "नौछम्‍मी नारैण" उनकी एक ऐसी रचना है जिसने न केवल उस समय की मौजूदा सरकार को पलट दिया था बल्कि आज भी सरकारें संभल कर चलती हैं।    
बेटे कविलास के साथ प्रसिद्ध गीत 'देहरादून वाला हूं' गाते हुए
पुराने जमाने में जब मनोरंजन के साधन ना के बराबर होते थे तो संगीत ही मनोरंजन का साधन होता है। पहाड़ों में लोक गीतों का चलन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है उस समय किसी भी चर्चित घटना और व्‍यक्ति पर लोक गीत बन जाया करते थे, लोकगीत भी कई प्रकार के होते हैं जिनके बारे में हम और कभी बात करेंगे। लोक गीत अक्‍सर हमारे आस-पास की घटनाओं पर आधारित होते हैं इसीलिए सुनने वाला उन गीतों को खुद से जोड़कर देखने लगता है और परिस्थितियों में खुद को देखता है।
ऑल इंडिया रेडियो लखनऊ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले नेगी जी ने अभी तक 1000 के करीब गाने गाये हैं, उनके हर एक गीत में एक पूरी कहानी छिपी होती है जो आपको अपनी सी लगती है। नेगी जी ने  न केवल उत्‍तराखंड के लोकगीतों को अपनी आवाज देते हुए अभी तक संजोए रखा है बल्कि अपने खुद के लिखें गीतों और कविताओं के माध्‍यम से उत्‍तराखंड के हर उम्र वर्ग के लोगों को अपना दीवाना बनाया है। दुनिया भर में रहने वाले उत्‍तराखंडी उनकी मधुर आवाज और दिलों में उतरने वाले गीतों के बोलों को सुनने के लिए सात समंदर पार से बुलाते रहते हैं। उनके ऐसे कई ऐसे गीत हैं जिनको सुनते समय आपके बदन में सिरहन सी होती है और आप उस गीत में वर्णन किए गए दृश्‍य व घटना में खो जाते हैं।
जब टेप-रिकॉर्डर का जमाना था तो मेरा पास उनका हर कैसेट हुआ करता था मुझे याद है 90 के दशक में हमारे घर में टेप-रिकॉर्डर हुआ करता था तो लोग अक्‍सर गीत सुनने आया करते थे, नयी कैसेट का इंतजार रहता था, पैसे बचाकर कैसेट खरीदता था, शायद रु.10 की कैसेट आती थी, कैसेट्स का आदान-प्रदान होता था, मगर एमपी3 के आने से सब कुछ तहस-नहस हो गया, डिजीटल क्रांति के बाद तो संगीत का सुनहरा दौर लगभग थम सा गया है, आजकल बहुत ही कम एलबम रिलीज होती हैं उनमें से ज्‍यादातर को यूट्यूब पर ही रिलीज किया जाता है, बड़ी म्‍यूजिक कंपनियां अब गायकों को स्‍पोंसर नहीं करती हैं और गायक को अपने खर्च पर ही सब कुछ करना होता है।
"आज के समय में तो बस मुफ्‍त के कद्रदान बचे हैं"।
पिछले दिनों जब नेगी जी के बीमार पड़ने की खबरे आयी तो बहुत बुरा लगा ऐसा लगने लगा मानों उत्‍तराखंड की पहचान कोई हमसे छीन रहा है।
मुझे उनका यह गीत कुछ अच्‍छा करने के लिए सदा ही प्रेरित करता रहा है :
"भोल जब फिर रात खुलली, धरती मा नयी पौध जमली,
पुरणा डाला ठंगरा होकि नयी लगुलूं सारु द्याला
मी त नी रॉलू म्‍यारा भुलों पर तुम दगड़ी यि गीत राला"
मुझे भी 2-3 बार कार्यक्रम के दौरान उनसे मिलने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है जो मेरे लिए सौभाग्य की बात है। उनका स्वभाव बहुत ही सरल लगा और वे गढ़वाली में ही बात करते हैं।
अद्भूत पल
मैं ईश्‍वर से उनकी लंबी एवं स्‍वस्‍थ जीवन की प्रार्थना करता हूं।
किसी भी तरह की त्रुटि के लिए माफी चाहूंगा।

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