घी – एक चमत्‍कारी औषधि

Ghee

जो आयुर्वेद इस्तेमाल कर चुके हैं वे जानते हैं कि घी को पहले से ही चमत्‍कारी दवा का स्‍थान प्राप्‍त है। पुराने वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि घी एक ऐसा उत्पाद है जो मां के दूध की गुणवत्ता के निकट होता है और मस्तिष्क संबंधी कोर्टेक्‍स के समान आणविक संरचना होती है।

पिछले दिनों एक पॉडकास्‍ट में भारत के स्‍टार फुटबॉल खिलाडी सुनील क्षेत्री ने कहा - ''मैं दूध, दही, मक्‍खन और मांस आदि का सेवन नहीं करता हूं लेकिन मैं घी खाता हूं'' क्‍योंकि घी शरीर को अन्‍य चीजों के मुकाबले अधिक ऊर्जा प्रदान करता है तथा घी शरीर के कण-कण में प्रवेश करता है जिससे पूरा शरीर तेजपूर्ण बना रहता है। 

बाजार में अमेरिकी रिफाइंड या अन्‍य तेलों के आने से पहले हमारे देश भारत में सभी घी का ही प्रयोग करते थे जिसके कारण वे कम बीमार पडते थे, मोटे नहीं होते थे लेकिन आजादी के बाद जब अमेरिकी कंपनियां भारतीय बाजार में आयीं तो इन कंपनियों ने लोगों को यह कहकर डराया कि घी खाने से लीवर फेल होने और हार्ट-अटैक का खतरा होता है। जिसके बाद से देश में घी का चलन कम होने लगा और लोग रिफाइंड तेल के आदी होते चले गये।

अब स्थिति यह है कि भारत अपनी खाद्य तेल की जरुरत का 60 प्रतिशत हिस्‍सा विदेशों से आयात करता है जिसमें पॉम ऑयल का हिस्‍सा सबसे अधिक 40 प्रतिशत है।

आयुर्वेद में घी का महत्‍व और लाभ

घी सभी प्रकार की अग्नि (पाचन तथा मेटाबॉलिक अग्नि) को बढाता है। घी एक बहुत अच्‍छा पोषक तत्‍व है यह शरीर के कण-कण में समाता है और इसमें रोगों को ठीक करने का अदभुत गुण होता है। यह योगवही (अर्थात यह सभी जडी-बूटियों के समस्‍त गुणों को सोखता है और उन्‍हें शरीर के प्रत्‍येक ऊत्‍तक तक पहुंचाता है)। घी वात व पित्‍त को उत्‍तेजित करता है लेकिन कफ को बढा सकता है। किन्‍तु ध्‍यान सभी घी लाभदायक नहीं होते, केवल देसी गाय का घी ही शरीर के लिए उत्‍तम रहता है क्‍योंकि इसें प्राकृतिक तरीके से पाला जाता है। देसी गाय प्राकृतिक घास व औषधीय पौधे खाती है।

देसी गाय के घी के लाभ

1.    घी ही एकमात्र ऐसा पदार्थ है जो ओज का बढाता है, इसमें एंटी-एजिंग गुण होता है और जीवनकाल को बढाता है।

2.    पाचन अग्नि को बढाते हुए पाचन को आसान बनाता है और शरीर को पौष्टिक तत्‍व को अवशोषित करने में सहायता करता है।

3.    घी त्‍वचा को चमक देता है, रंगत निखारता है, त्‍वचा के रुखेपन का कम करता है और जोडों की अकडन को कम करता है।

4.    यह आंखों की रोशनी बढाता है, संवेदी अंगों को बेहतर बनाता है।

5.    यह हमारे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभकारी है, मन को स्‍वस्‍थ रखता है, यादाश्‍त और एकाग्रता को बढाता है।

6.    घी गर्भवती महिलाओं और स्‍तनपान कराने वाली माताओं के लिए उत्‍तम है।

7.    कब्‍ज होने के स्थिति में यदि इसे दूध में मिलाकर पिया जाय तो यह कब्‍ज में आराम पहुंचाता है।

इसके अलावा घी के अनेक लाभ हैं।

घी के कुछ नुकसान भी हैं।

घी ही नहीं बल्कि सभी प्रकार की चीजों का निश्चित मात्रा से अधिक सेवन करना हानिका‍रक हो सकता है इसलिए इसे संतुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। जिन लोगों को फैटी लीवर, हेपाटाइटिस, बुखार, मोटापा, बदहजमी या पेट खराब होने की समस्‍या हो उन्‍हें घी के प्रयोग से बचना चाहिए। 

आयुर्वेद के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: आयुर्वेद का परिचय

घी प्रोटीन और अपशिष्‍ट पदार्थो से मुक्‍त होता है और इसमें ओज की मात्रा अन्‍य सभी भोजन से अधिक होती है।

प्रत्‍येक भोजन जिसे घी में पकाया जाता है उसके अपने गुण भी ताकतवर हो जाते हैं, मानव शरीर द्वारा इसे बेहतर ढंग से अवशोषित किया जाता है और पचाने में आसान होता है। घी भोजन को विघटित करने और इसकी ऊर्जा को स्‍थानांतरित करने के लिए सबसे अच्‍छा उत्‍प्रेरक है। घी को पाचन क्रिया द्वारा इतना परिष्‍कृत बना दिया जाता है कि यह छोटी से छोटी कोशिकाओं में भी प्रवेश करने में सक्षम रहता है, उनका पोषण और सफाई करता है। इसके अलावा, घी में जीवन को नये प्राण देने का प्रभाव होता है।

घी बहुत ही शुद्ध और जानवरों के प्रोटीन से पूरी तरह मुक्‍त होता है: घी बनाने के लिए केवल नमक रहित, आर्गेनिक मक्‍खन ही इस्‍तेमाल करें।


लेकिन सावधान रहें। बहुत ज्‍यादा घी इस्‍तेमाल करने से लीवर कमजोर हो सकता है।

आयुर्वेदिक शुद्धिकरण उपचार, पंचकर्म में भी घी का इस्‍तेमाल होता है। अन्‍य शुद्धिकरण तरीकों की तुलना में, पंचकर्म न केवल पानी में घुलनशील अशुद्धियों को हटाता है बल्कि वसा में घुलनशील विषाक्‍त पदार्थों और शरीर में जमा भारी धातु को भी हटाता है।

इन्‍ही कारणों से घी को आयुर्वेदिक रसोई में वनस्‍पति तेलों की तुलना में पसंद किया जाता है। तेलों को ऊपर से छिड़का जाता है। जैतून और सूरजमुखी से कोल्‍ड प्रेस्‍ड तेलों को आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से सबसे अच्‍छे तेलों में गिना जाता है क्‍योंकि वे पचाने में आसान और पौष्टिक होते हैं। हालांकि, मैं इन तेलों को तलने के लिए इस्‍तेमाल नहीं करने की सिफारिश करता हूं। इसके लिए, नारियल तेल इस्‍तेमाल करना बेहतर रहता हैं। तलने के लिए घी भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है। फिर भी, इसे बहुत ज्‍यादा गर्म न होने दें क्‍योंकि यह बहुत जल्‍दी जल जाता है। यदि घी से धुआं निकलने लगे तो, समझ ले यह बहुत गर्म हो चुका है। कृपया केवल उच्‍च गुणवत्‍ता के तेलों का इस्‍तेमाल करें। सस्‍ते तेल ज्‍यादातर मूंगफली से बनाये जाते हैं और पचाने में मुश्किल होते हैं। बुरे तेल के सेवन से पेट भी फूलता है। सोयाबीन के तेलों से बचें, जिन्‍हें पचाना मुश्किल होता है और अक्‍सर आनुवांशिक रुप से संसोधित पौधें से बनते हैं।

लेख कैसा लगा अवश्‍य बतायें !

ज्‍यादा जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: Ayurvedic Khana Khazana

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ